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आंकड़े / दीपाली अग्रवाल

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 वे चाहते हैं आंकड़ों में बहस की जाए
और पेश किये जायें किताबों के सन्दर्भ
किसी भी तर्क़ से पहले,
वे पृष्ठ संख्या से बात करते
और सदैव संख्या में रहते।
इतिहास के तमाम दशक
उनकी पोरों पर हैं।
वे जानते हैं हिसाब
मरने और मारने वालों का,
हारने और हराने वालों का,
और भी कितना कुछ है जो वह जानते हैं,
आंकड़ों और किताबों के सन्दर्भ में।
मैं भी अब अकाल में बचे दाने गिन रही हूँ,
बाढ़ में बहे आंसू और भूकंप की मिट्टी भी।
मैं समेट रही हूँ सूरज की रौशनी
और फूलों की गंध।
वेदना की गणित,
हर्ष का विज्ञान,
वक़्त की झुर्री और मौसम की उदासी,
मैं नरसंहार में बहे रक्त को इकट्ठा करुँगी
और ये सब कुछ किसी किताब में लिखूंगी
पृष्ठ संख्या के साथ।
ताकि सदैव बहस की जा सके
आंकड़ों के साथ।