भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आंगण आया / राजूराम बिजारणियां

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:39, 12 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजूराम बिजारणियां |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

‘‘पोढ़ो ढोला ढोलियै
मधरा-मधरा बोलियै
कूंट-कूंट उगेरया गीत
धोरां रै धोरी
भंवर भतूळै रै
आंगण आया।’’

पून करी मनवार
हलायो पंखियो
देंवता कोआ।
लोटै पाणी घात
धुवाया हाथ
कराई चळू बादळी
गजबी पावणा नै।

कोर-कोर कांगणां
मांड्या मांडणा
लगायां मैंदी हाथ
... मांझळ रात

पोढी रेत, रळायां हेत
ले ढोलै नै ढोलियै।
बाथमबांथ
भव सूं दूर
भूवंती छिंया
चढ़ी अकासां
मिटांवती भेद
दो होवण रो।