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आंतरो / गंगासागर शर्मा

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कल्पना रै समंदर में
डूबूं-तिरूं
जथारथ री जमीं माथै
उतरतां लागै डर।
क्यूं है
सुपना अर साच में
ओ आंतरो?
मून भांगै
मां रो हेलो
‘लाडेसर कमठाणै कोनी जावै कांई आज?’