http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%86%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%80_/_%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A5_%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9&feed=atom&action=historyआंधी / श्रीनाथ सिंह - अवतरण इतिहास2024-03-28T20:21:09Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%86%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%80_/_%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A5_%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9&diff=190757&oldid=prevDhirendra Asthana: '{{KKRachna |रचनाकार=श्रीनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2015-04-05T09:22:53Z<p>'{{KKRachna |रचनाकार=श्रीनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<p><b>नया पृष्ठ</b></p><div>{{KKRachna<br />
|रचनाकार=श्रीनाथ सिंह<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatBaalKavita}}<br />
<poem><br />
छप्पर उड़ कर गिरा भूमि पर,<br />
धूल गगन -तल पर जा छाई।<br />
चौखट से लड़ गये किवाड़े,<br />
हर हर करके आँधी आई।<br />
गोफन से बन बाग उठे हिल,<br />
छूटे चमगादड़ ज्यों ढेला।<br />
पट पट आम गिरे गोली से,<br />
हुआ हवा का बेहद रेला।<br />
कंघी करने लगीं झाड़ियाँ,<br />
निकले उनसे खरहे तीतर।<br />
नदियों ने उड़ने की ठानी,<br />
नावें उलटीं उनके भीतर।<br />
टूटे पेड़ रुकीं सब राहें,<br />
और कुओं का झलका पानी।<br />
आँख बंद की सूरज ने भी,<br />
हार हवा से सब ने मानी।<br />
छाई छटा अजीब धरा पर,<br />
घिरी घटा फिर काली काली।<br />
वर्षा ने धो दिया जगत को,<br />
हुई नई उसकी हरियाली।<br />
आँधी से भी जादा ताकत,<br />
बसती है मनुष्य के मन में।<br />
वह चाहे तो कर सकता है,<br />
कुछ का कुछ दुनियाँ को छन में।<br />
</poem></div>Dhirendra Asthana