Last modified on 7 फ़रवरी 2016, at 13:41

आइनों पर आज जमी है काई, लिख / गौतम राजरिशी

आईनों पर आज जमी है काई, लिख
झूठे सपनों की सारी सच्चाई, लिख

जलसे में तो खुश थे सारे लोग मगर
क्या जाने क्यूँ रोती थी शहनाई, लिख

साहिल के रेतों पर या फिर लहरों पर
इत-उत जो भी लिखती है पुरवाई, लिख

रात ने जाते-जाते क्या कह डाला था
सुब्‍ह खड़ी है जाने क्यूँ शरमाई, लिख

किसकी यादों की बारिश में धुल-धुल कर
भीगी-भीगी अब के है तन्हाई, लिख

रूहों तक उतरे हौले-से बात कहे
कोई तो अब ऐसी एक रुबाई, लिख

छंद पुराने, गीत नया ही कोई रच
बूढ़े बह्‍र पे ग़ज़लों में तरुणाई लिख




(कदम्बिनी अक्टूबर 2008, हंस सितम्बर 2010)