भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आईना रे आईना / सूर्यभानु गुप्त

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:34, 6 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यभानु गुप्त |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आईना रे आईना

आईना रे आईना,
तेरे जैसा कोई ना!

कौन दूसरी अंदर चिड़िया,
देखे चोंच मारकर चिड़िया,
तू आखिर क्या चीज, इसे वह
समझ आज तक पाई ना!
आईना रे आईना!

मुन्ना देखे मुनिया देखे,
तुझको सारी दुनिया देखे,
साथ लिये बिन तुझको अपने,
घर से निकले नाई ना!
आईना रे आईना!

मन का साफ, गलती माफ,
सच बोले लेकिन चुपचाप,
बड़ा भला तू, कभी किसी की
मुँह से करे बुराई ना!
आईना रे आईना!