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आईने से भी कभी आंख मिलाई क्या है / कांतिमोहन 'सोज़'

आईने से भी कभी आँख मिलाई क्या है ।
कैसे जानेगा मेरे यार सचाई क्या है ।।

दिल में गर तेरे वही है जो ज़बां पर है तेरी
तो बता दे तेरी कुश्तों से लड़ाई क्या है ।

जानलेवा है समाजत का शिकंजा लेकिन
काश जाने भी मुक़य्यद कि बुराई क्या है ।

साहिबे-दिल भी क़यामत की नज़र रखते हैं
जानते हैं कि तेरे दिल में समाई क्या है ।

अपने अजदाद से ये बात ही सीखी होती
ख़ुशनुमाई रवादारी शिकेबाई क्या है ।

हश्र क्या होता है मीरी हो कि सुल्तानी हो
एक नज़र देख तो तारीख़े-ख़ुदाई क्या है ।

साफ़ कहता है सुखी रहता है अपने दिल में
यूँ तेरे सोज़ को दरकार सफ़ाई क्या है ।।

23 मार्च 1987