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"आईनों पे जमीं है काई लिख / गौतम राजरिशी" के अवतरणों में अंतर

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<poem>आइनों पे जमी है काई,लिख
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<poem>आईनों पर आज जमी है काई, लिख
झूठे सपनों की सच्चाई लिख
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झूठे सपनों की सारी सच्चाई, लिख
  
जलसे में तो सब खुश थे वैसे
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जलसे में तो खुश थे सारे लोग मगर
फिर रोयी क्यों शहनाई,लिख
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क्या जाने क्यूं रोती थी शहनाई, लिख
  
कभी रेत और कभी पानी पे
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साहिल के रेतों पर या फिर लहरों पर
जो भी लिखे है पूरवाई,लिख
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इत-उत जो भी लिखती है पुरवाई, लिख
  
तेरी यादों में धुली-धुली-सी
+
रात ने जाते-जाते क्या कह डाला था
अबके भिगी है तन्हाई,लिख
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सुब्‍ह खड़ी है जाने क्यूं शरमाई, लिख
  
तारे शबनम के मोती फेंके
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किसकी यादों की बारिश में धुल-धुल कर
हुई चांद की मुँहदिखाई,लिख
+
भीगी-भीगी अब के है तन्हाई, लिख
  
क्या कहा रात ने जाते-जाते
+
रूहों तक उतरे हौले-से बात कहे
क्यों सुबह खड़ी है शरमाई,लिख
+
कोई तो अब ऐसी एक रुबाई, लिख
  
कदम-कदम पे मुझको टोके है
+
छंद पुराने, गीत नया ही कोई रच
कौन सांवली-सी परछाई,लिख
+
बूढ़े बह्‍र पे ग़ज़लों में तरुणाई लिख
  
रुह में उतरे और बात करे
+
''(हंस, सितम्बर 2010)''
अब ऐसी भी इक रुबाई लिख
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16:45, 26 सितम्बर 2010 का अवतरण

आईनों पर आज जमी है काई, लिख
झूठे सपनों की सारी सच्चाई, लिख

जलसे में तो खुश थे सारे लोग मगर
क्या जाने क्यूं रोती थी शहनाई, लिख

साहिल के रेतों पर या फिर लहरों पर
 इत-उत जो भी लिखती है पुरवाई, लिख

रात ने जाते-जाते क्या कह डाला था
सुब्‍ह खड़ी है जाने क्यूं शरमाई, लिख

किसकी यादों की बारिश में धुल-धुल कर
भीगी-भीगी अब के है तन्हाई, लिख

रूहों तक उतरे हौले-से बात कहे
कोई तो अब ऐसी एक रुबाई, लिख

छंद पुराने, गीत नया ही कोई रच
बूढ़े बह्‍र पे ग़ज़लों में तरुणाई लिख

(हंस, सितम्बर 2010)