भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आईनों पे जमीं है काई लिख / गौतम राजरिशी

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:55, 19 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गौतम राजरिशी |संग्रह= }} <poem>आइनों पे जमी है काई,लि...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आइनों पे जमी है काई,लिख
झूठे सपनों की सच्चाई लिख

जलसे में तो सब खुश थे वैसे
फिर रोयी क्यों शहनाई,लिख

कभी रेत और कभी पानी पे
जो भी लिखे है पूरवाई,लिख

तेरी यादों में धुली-धुली-सी
अबके भिगी है तन्हाई,लिख

तारे शबनम के मोती फेंके
हुई चांद की मुँहदिखाई,लिख

क्या कहा रात ने जाते-जाते
क्यों सुबह खड़ी है शरमाई,लिख

कदम-कदम पे मुझको टोके है
कौन सांवली-सी परछाई,लिख

रुह में उतरे और बात करे
अब ऐसी भी इक रुबाई लिख