भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आए जब भी सवाल काग़ज़ पर / हरेराम समीप

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:13, 6 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरेराम समीप |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आए जब भी सवाल काग़ज़ पर
कह गए मेरा हाल काग़ज़ पर

बाढ़‚ सूखा‚ अकाल काग़ज़ पर
हम हुए मालामाल काग़ज़ पर

लाइनें थीं जहाँ मरीज़ों की
था वहाँ अस्पताल काग़ज़ पर

कौन भीतर के अब तनावों की
रोक पाएगा चाल काग़ज़ पर

जिनका हर शब्द ठोस होता था
आज वे हैं निढाल काग़ज़ पर

कुछ अँधेरा तो मन का दूर हटे
यूँ जलाएँ मशाल काग़ज पर