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"आए हैं जिस मक़ाम से उसका पता न पूछ / इन्दु श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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आए हैं जिस मक़ाम से उसका पता न पूछ
 
आए हैं जिस मक़ाम से उसका पता न पूछ
रुदादे-सफ़र पूछ मगर रास्ता न पूछ
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गर हो सके तो देख ये पाँवों के आबले
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गर हो सके तो देख ये पाँवों के आबले<ref>छाले</ref>
सहरा कहाँ था और कहाँ जलजला न पूछ
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सहरा कहाँ था और कहाँ ज़लज़ला न पूछ
  
वाँ से चले हैं जबसे मुसलसल नशे में है
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ले जाए किस दयार में हमको नशा न पूछ
 
ले जाए किस दयार में हमको नशा न पूछ
  
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दीवानगी की आग में क्या-क्या गया न पूछ
 
दीवानगी की आग में क्या-क्या गया न पूछ
  
किसकी तलाश है कैसी हम्द कैसी बन्दगी
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किसकी तलाश कैसी हम्द कैसी बन्दगी
 
है धूप में कि छाँव में मेरा ख़ुदा न पूछ
 
है धूप में कि छाँव में मेरा ख़ुदा न पूछ
  
 
जब वो नज़र के बीच जले है चराग़-सा
 
जब वो नज़र के बीच जले है चराग़-सा
 
ख़्वाहिश न कोई पूछ कोई इल्तिजा न पूछ
 
ख़्वाहिश न कोई पूछ कोई इल्तिजा न पूछ
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22:34, 6 मार्च 2010 के समय का अवतरण

आए हैं जिस मक़ाम से उसका पता न पूछ
रुदादे-सफ़र<ref>यात्रा की कहानी</ref> पूछ मगर रास्ता न पूछ

गर हो सके तो देख ये पाँवों के आबले<ref>छाले</ref>
सहरा कहाँ था और कहाँ ज़लज़ला न पूछ

वाँ<ref>वहाँ</ref> से चले हैं जबसे मुसलसल<ref>निरंतर</ref> नशे में है
ले जाए किस दयार में हमको नशा न पूछ

वाक़िफ़ नहीं है इश्क़ की पेचीदगी से तू
है ये शुरू कहाँ से कहाँ पे सिरा न पूछ

मौसम गए सुकून गया ज़िन्दगी गई
दीवानगी की आग में क्या-क्या गया न पूछ

किसकी तलाश कैसी हम्द कैसी बन्दगी
है धूप में कि छाँव में मेरा ख़ुदा न पूछ

जब वो नज़र के बीच जले है चराग़-सा
ख़्वाहिश न कोई पूछ कोई इल्तिजा न पूछ

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शब्दार्थ
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