<poem>
पकड़ो हाथचलो तो मेरे साथतुम्हें ले चलूँ बचपन के पास।खूब बरसाकल रात जो पानीउसमें चलोकागज की नाव सेकर आते हैं एक बार फिर सेबेख़ौफ होकेवो बचपन वालीलम्बी- सी सैर।त्रस्त हो चला अबरोज- रोज हीकड़वे वचनों कोपीकर मन।आओ, चलो तो जरा रंगबिरंगाशरबत सा मीठाचुस्की का गोलाफिर से बनवा लें।कूदे जीभरबरसात के संगभूल के रिश्तेऔर सारे बंधनटूटे झुलसेमन की तपस कोआज मिटा लेंजीभर चलो जरायूँ शीतलता पा लें।
</poem>