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आओ, दीप चलाएँ / प्रकाश मनु

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खिली-खिली मुसकानें लेकर
आओ, दीप जलाएँ,
फुलझड़ियों के गाने लेकर
आओ, दीप जलाएँ।

एक दीप ऊँची मुँडेर पर
एक दीप देहरी पर,
एक दीप झिलमिल आँगन में
एक गली में बाहर।

दीपक एक जहाँ खेला करता,
है चुनमुन भैया,
दीपक एक जहाँ नन्ही की
होती पाँ-पाँ पैयाँ।

एक दीप अँधिययारी आँखों
का बन जाए तारा,
एक दीप झोंपड़ियों में भी
फैलाए उजियारा।

एक दीप-हाँ, याद आ गया
ठीक द्वार के आगे,
ताकि प्यार ही प्यार रहे बस
सारी नफरत भागे।

किस्से जहाँ सुनाती थी
बूढ़ी काकी हँस-हँसकर,
दीपक एक वहाँ भी रखना
थोड़ा शीश झुकाकर।

एक दीप ऐसा जो सबको
नेह-प्यार सिखलाए
आँधी-तूफानांे में जाने
का साहस बन जाए।

एक दीप इसलिए कि मन में
संशय कभी उगे ना,
एक दीप इसलिए कि भय का
दानव कभी जगे ना।

दीप-दीप से मिलकर होंगी
उजियारे की पाँतें,
दीपों की झिलमिल कतार-सी
होंगी मीठी बातें।

आओ, दीप जलाएँ लेकर
नई सुबह के सपने,
हम सबके हो जाएँ,
धरती के सुख-दुख हों अपने!