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आओ करें आनन्द केलि / अनिल जनविजय


आओ करें आनन्द-केलि
मेरे जीवन की सहेली

विकल-विहग तेरे उरोज
कम्पित-आकुल दोनों सरोज
हहराता चेतन - सागर
तॄष्णा में डूबा है स्वर
व्यग्र-विह्वल चंचल-चेहरा
दॄग छाया मादक घेरा
व्याकुल अधर तपता शरीर
प्रणय पागल मन है अधीर

लगे मुझे तू अलबेली
मेरे जीवन की सहेली

मंद- मॄदु उल्लास तेरा
लालसी परिहास मेरा
गरल अनल रक्तिम कपोल
राग मर्दन रति हिल्लोल
सातवें सोपान पर हम
काम के उत्तान पर हम
झर झराझर झरा पंचम
तॄष्णा -तॄप्ति का संगम

थी अनोखी अनुराग खेलि
मेरे जीवन की सहेली

2002 में रचित