भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आओ गाँव चले / हरेराम बाजपेयी 'आश'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:58, 13 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरेराम बाजपेयी 'आश' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं भी चलूँ तुम भी चलो,
मिलकर सभी चले,
असली भारत बसा जहाँ है,
आओ गाँव चले।
हरियाली की चुनर ओढ़े
देखो धरती माता,
पीली पीली सरसों के संग
है बचपन मुस्कराता,
रन झुन करती गायें आएँ
जैसे ही शाम ढले। आओ गाँव॥1॥

बौराए हों आम जहाँ पर,
कोयल चहक रही,
मीठी मीठी तान सुनाकर,
मैना बहक रही,
बच्चों की टोली हो बैठी,
देखो आम तले। आओ गाँव चले॥2॥

बोगन बेलिया मगन हो रही,
पहने सतरंगी साड़ी,
टेसू हुए बसंती देखो,
बैठे प्रेम की गाड़ी,
नाच रही हो जहाँ तितलियाँ,
भौरें गीत गढ़े। आओ गाँव चले॥3॥

कहीं पर रंग कहीं पर रोली,
कहीं गुलाल अबीर,
सभी समान है बाल रंग में,
नहीं कोई गरीब-अमीर,
फागुन दरवाजे पर आकार,
सबसे मिल गले। आओ गाँव चले।
आओ गाँव चले। आओ गाँव चले॥4॥