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आकण्ठ भरे सुधा-कलश / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

आकण्ठ भरे सुधा कलश तुम!
मैं हूँ मरण का मुक्ति कामी
दो बूँदें जो मिलीं प्यार की
मैं तेरा युग -युग अनुगामी।
तुम मेरे सागर , तुम नैया
बीच भँवर में छोड़ न जाना
तुम डोरी अंतिम साँसों की
डोर कभी तुम तोड़ न जाना।
सिन्धु- तरंग की उम्र नहीं कुछ
जरा- मरण से कुछ ना नाता
तूफानों से लड़ें रात -दिन
इक दूजे को छोड़ न पाता।