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आकर गिरा था कोई परिंदा लहू में तर / शकेब जलाली

आकर गिरा था कोई परिंदा लहू में तर ।
तस्वीर अपनी छोड़ गया है चट्टान पर ।

मलबूस (वस्त्र) ख़ुशनुमा हैं मगर जिस्म खोखले,
छिलके सजे हों जैसे फलों की दुकान पर ।

हक़ बात आके रुक सी गई थी कभी 'शकेब'
छाले पड़े हुए हैं अभी तक ज़बान पर ।