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आकस्मिक मृत्यु-2 / कुमार अंबुज

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रोज़-रोज़ की अनुपस्थिति आख़िर उसे विश्वसनीय बना देगी

आदमी कई बार उस तरह नहीं गलता
जैसे अपनी ही आँच में धीरे-धीरे पिघलती है मोमबत्ती
वह यकायक उस तरह से हो जाता है ओझल
जैसे जादू के खेल में आँखों के ऐन सामने ग़ायब होता है हाथी
फिर पता चलता है कि यह कोई जादू नहीं था, जीवन है

अब सिर्फ़ साहस चाहिए
जो एक-दूसरे का मुँह देखने से कुछ-कुछ आता है
और इसी वजह से कभी-कभी टूट भी जाता है ।