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आक्षितिज जो भी प्रत्यक्ष है / शिव ओम अम्बर

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आक्षितिज जो भी प्रत्यक्ष है,
इन्द्रधनुषों के समकक्ष है।

इष्ट है द्रोह शिव का उसे,
दर्प ही दिग्भ्रमित दक्ष है।

राग है रामगिरि का शिखर,
गीत प्रतिपल विकल यक्ष है।

पक्ष प्रतिपक्ष, के पोषको,
सत्य निरपेक्ष निष्पक्ष है।

दर्द हर रंग का है यहाँ,
मेरा दिल इक सभाकक्ष है।