Last modified on 23 मई 2016, at 03:05

आखर-आखर मे आँकल अछि अपन हृदयकेर भावना / धीरेन्द्र

सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:05, 23 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरेन्द्र |संग्रह=करूणा भरल ई गीत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आखर-आखरमे आँकल अछि अपन हृदयकेर भावना
रहल ने हमरा मोनमे कनियो आन तरहकेर कामना।
धरतीकेर आँतरमे-पाँतरमे आर पहाड़क खोहमे,
जनस्थलीसँ वनस्थली धरि घुमलहुँ बस व्यामोहमे !
से व्यामोह जे हमरा भेटत कतहु मनक एक मीत रे,
जकर अभावमे हमरा लगइछ मानव-जीवन तीत रे !
नहि भेटल कतबो हम ताकी, बाँटी खाली प्रीति रे !
भऽ निराश हम बेर-बेर बस गाबी खाली गीत रे !
बूझह दुनियाँ जे बूझय, हम कऽ रहलहुँ अछि साधना !
आखर-आखरमे आँकल अछि अपन हृदयकेर भावना !