भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आख़िरी नज़्म / राशिद जमाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़मीं
जिस से मुझ को शिकायत रही है
कि वो सब के हिस्से में है कुछ न कुछ
एक मेरे सिवा
ज़मीं
जिस पे रहना ही कार-ए-अबस था
वही छोड़नी पड़ रही है
तो मैं इतना घबरा रहा हूँ
कि अब मेरी यक-रंग रोज़ और शब
माह और साल की
सारी उक्ताहटें क्या हुईं