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आखि़री कविता / अशोक शाह

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सूरज ने लिखी जो ग़ज़ल
वह धरती हो गई

धरती ने जो नज़्म कहा
नदी बन गयी

नदी-मिट्टी ने मिलकर
लिख डाले गीत अनगिन
होते गये पौधे और जीव

इन सबने मिलकर लिखी
वह कविता आदमी हो गई

धरती को बहुत उम्मीद है
अपनी आखि़री कविता से