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आगमनी / कुबेरनाथ राय

यह अरुण पीताभ उज्ज्वल अवतरण
रथ और जयजयकार
मन का पानी चमक उठा
डबने उतराने लगे, लघुबाल शतदल।

तुम्हारी यह धनुषटंकार
तुम्हारे रोष के ये पुष्प
स्नेह के ज्यों वाण बरसे
ढॅंक रहे मुझको सहस्रों फन पसार।

कल जब नभ से धरा तक
तुम्हारा प्राण पिघलेगा
तब फूल कांटे में उगेगा
नील धूसर वेधता वह शुक उड़ेगा
जिसका पंख दानव काट डाला था।

[ कलकत्ता : वेडेन स्क्वायर, 1959 ]