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आगरे की तैराकी / नज़ीर अकबराबादी

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जब पैरने की रुत में दिलदार<ref>प्यारे, प्रेमपात्र</ref> पैरते हैं।
आशिक़ भी साथ उनके ग़मख़्वार<ref>सहानुभूति रखने वाले, हमदर्द</ref> पैरते हैं।
भोले सियाने, नादां, हुशियार पैरते हैं।
पीरो<ref>वृद्ध</ref> जबां, व लड़के, अय्यार<ref>चालाक, तेज</ref> पैरते हैं।
अदना<ref>साधारण, छोटे</ref> ग़रीबो-मुफ़्लिस<ref>ग़रीब</ref>, ज़रदार<ref>मालदार</ref> पैरते हैं।
इस आगरे में क्या-क्या ऐ यार पैरते हैं॥1॥

झरने से लेके यारो सहजानकाता व नाला।
छतरी से बुर्ज खू़नी दारा का चोंतरा क्या।
महताब बाग़, सैयद तेली, किला व रोज़ा।
गुल शोर की बहारें अम्बोह सैर दरिया।
हर इक मकां में होकर हुशियार पैरते हैं।
इस आगरे में क्या-क्या ऐ यार पैरते हैं॥2॥

बागे़ हकीम, और जो शिवदास का चमन है।
उनमें जगह जगह पर मजलिस है, अंजुमन<ref>सभा</ref> है।
मेवा, मिठाई, खाने और नाच दिल लगन है।
कुछ पैरने की धूमें कुछ ऐश का चलन है।
इश्रत में मस्त होकर हर बार पैरते हैं।
इस आगरे में क्या-क्या ऐ यार पैरते हैं॥3॥

बरसात में जो आकर चढ़ता है खू़ब दरिया।
हर जा खुरी<ref>इतना तेज़ बहने वाला पानी जिसके विरुद्ध नाव न चल या चढ़ सके</ref> व चादर<ref>ऊपर से गिरती हुई पानी की चौड़ी धार</ref> बन्द<ref>ऐसा बांध जहाँ पानी रुका हुआ हो</ref> और नांद<ref>अधिक पानी का गहरा चौड़ा वृत्त</ref> चकवा<ref>स्थित अधिक जल</ref>।
मेड़ा, भंवर, उछालन<ref>पानी का वेग से उछलना</ref>, चक्कर<ref>पानी का भंवर</ref> समेट माला।
बेंडा घमीर<ref>गहरा पानी जिसकी थाह न मिले</ref>, तख़्ता,<ref>सीधा खड़ा हुआ पानी</ref>, कस्सी, पछाड़, कर्रा<ref>बहते हुए पानी का थपेड़ा</ref>।
वां भी हुनर से अपने हुशियार पैरते हैं।
इस आगरे में क्या-क्या ऐ यार पैरते हैं॥4॥

तिरबेनी में अहा हा होती हैं क्या बहारें।
ख़ल्क़त<ref>जनसाधारण, जनता</ref> के ठठ हज़ारों पैराक की क़तारें।
पैरें, नहावें, उछलें, कूदें, लड़ें, पुकारें।
ले ले वह छींट, ग़ोते खा-खा के हाथ मारें।
क्या-क्या तमाशे कर-कर इज़हार<ref>प्रकट</ref> पैरते हैं।
इस आगरे में क्या-क्या ऐ यार पैरते हैं॥5॥

जमुना के पाट गोया सहने-चमन<ref>बाग़ का सहन</ref> हैं बारे।
पैराक उसमें पैरें, जैसे कि चांद तारे।
मुंह चांद के से टुकड़े, तन गोरे प्यारे-प्यारे।
परियों से भर रहे हैं मंझधार और किनारे।
कुछ वार पैरते हैं, कुछ पार पैरते हैं।
इस आगरे में क्या-क्या ऐ यार पैरते हैं॥6॥

कितने खड़े ही पैरें अपना दिखा के सीना।
सीना चमक रहा है हीरे का जूं नगीना।
आधे बदन पै पानी आधे पै है पसीना।
सर्वो<ref>सर्व का सीधा और सुन्दर वृक्ष</ref> का यह चला है गोया कि एक क़रीना<ref>क्रम</ref>।
दामन कमर पे, बांधे दस्तार<ref>पगड़ी</ref> पैरते हैं।
इस आगरे में क्या-क्या ऐ यार पैरते हैं॥7॥

जाते हैं उनमें कितने पानी पै साफ़ सोते।
कितनों के हाथ पिंअरे, कितनों के सर पै तोते।
कितने पतंग उड़ाते, कितने सुई पिरोते।
हुक्कों का दम लगाते, हंस-हंस के शाद<ref>खुश</ref> होते।
सौ-सौ तरह का कर-कर बिस्तार पैरते हैं।
इस आगरे में क्या-क्या ऐ यार पैरते हैं॥8॥

कुछ नाच की बहारें पानी के कुछ किनारे।
दरिया में मच रहे हैं इन्दर के सौ अखाड़े।
लबरेज़<ref>भरे हुए</ref> गुलरुखों<ref>सुन्दर व्यक्तियों से</ref> से दोनों तरफ़ करारे।
बजरे<ref>एक प्रकार की बड़ी और पटी हुई नाव</ref> व नाव, चप्पू<ref>नाव खेने का लम्बा बल्ला</ref>, डोंगे बने निवाड़े<ref>बिना पाल की छोटी नाव</ref>।
इन झमघटों से होकर सरशार<ref>मस्त</ref> पैरते हैं।
इस आगरे में क्या-क्या ऐ यार पैरते हैं॥9॥

नावों में वह जो गुलरू<ref>सुन्दर मुख वाले</ref> नाचों में छक रहे हैं।
जोड़े बदन में रंगीं, गहने भभक रहे हैं।
तानें हवा में उड़तीं, तबले खड़क रहे हैं।
ऐशो-तरब<ref>विलासता</ref> की धूमें, पानी छपक रहे हैं।
सौ ठाठ के, बनाकर अतवार<ref>ढंग</ref>, पैरते हैं।
इस आगरे में क्या-क्या ऐ यार पैरते हैं॥10॥

हर आन बोलते हैं सय्यद कबीर की जै।
फिर उसके बाद अपने उस्ताद पीर की जै।
मोर-ओ-मुकुट कन्हैया, जमुना के तीर की जै।
फिर ग़ोल<ref>झुंड</ref> के सब अपने खुर्दो-कबीर<ref>छोटे-बड़े</ref> की जै।
हरदम यह कर खु़शी की गुफ़्तार पैरते हैं।
इस आगरे में क्या-क्या ऐ यार पैरते हैं॥11॥

क्या-क्या ”नज़ीर“ यां के हैं पैरने के बानी<ref>आविष्कारक शुरुआत करने वाले</ref>।
हैं जिनके पैरने की मुल्कों में आन मानी।
उस्ताद और ख़लीफ़ा, शागिर्द, यार जानी।
सब खु़श रहें - ”है जब तक जमुना के बीच पानी“।
क्या-क्या हंसी-खु़शी से हर बार पैरते हैं।
इस आगरे में क्या-क्या ऐ यार पैरते हैं॥12॥

शब्दार्थ
<references/>