भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं / हैरत इलाहाबादी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:41, 12 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हैरत इलाहाबादी }} {{KKCatGhazal}} <poem> आगाह अप...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं
सामान सौ बरस के हैं कल की ख़बर नहीं

आ जाएँ रोब-ए-ग़ैर में हम वो बशर नहीं
कुछ आप की तरह हमें लोगों का डर नहीं

इक तो शब-ए-फ़िराक़ के सदमे हैं जाँ-गुदाज़
अंधेर इस पे ये है कि होती सहर नहीं

क्या कहिए इस तरह के तलव्वुन-मिज़ाज को
वादे का है ये हाल इधर हाँ उधर नहीं

रखते क़दम जो वादी-ए-उल्फ़त में बे-धड़क
‘हैरत’ सिवा तुम्हारे किसी का जिगर नहीं