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"आगो / लीलाधर मण्डलोई / सुमन पोखरेल" के अवतरणों में अंतर

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आगो नहुँदो हो त कविता हुने थिएन ।  
 
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15:18, 27 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण

मेरो टेबुलमा
ठोकिन्छन्
शब्दसँग शब्दहरू ।

एउटा झिल्को निस्कन्छ
र आगो जसरी फैलिन्छ
कवितामा ।

आगो नहुँदो हो त कविता हुने थिएन ।
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