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आगो / लीलाधर मण्डलोई / सुमन पोखरेल

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मेरो टेबुलमा
ठोकिन्छन्
शब्दसँग शब्दहरू ।

एउटा झिल्को निस्कन्छ
र आगो जसरी फैलिन्छ
कवितामा ।

आगो नहुँदो हो त कविता हुने थिएन ।
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