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आग-सी इक बुझाने लगा हूं / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'

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      आग -सी इक बुझाने लगा हूं ,
      ख़त तेरे मैं जलाने लगा हूं !
     
      भूल कर मैं तुझे रफ़्ता-रफ़्ता ,
      अपनी हस्ती मिटाने लगा हूं !

      क्या हकीकत कहूं, कैसे सपने ,
      आंख सब से चुराने लगा हूं !

      खो न जाए तेरी मुस्कराहट ,
      अश्क अपने छुपाने लगा हूं !

      याद होगा तुझे, साथ देना ,
      गीत भूला सा गाने लगा हूं !

      टूटे साज़ों पे क्या रँग जमेगा ,
      आदतन गुनगुनाने लगा हूं  !

      नाम आए तेरा, माफ़ करना ,
      हाल अपना सुनाने लगा हूं  !