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"आग की पहचान / पारस अरोड़ा" के अवतरणों में अंतर

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न मिले तुम्हें अगर
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कैसे वह पैदा होती है?
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लाओ दो माचिस
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तीली फूंक देकर वापस बुझा दो
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पर याद रखना 
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यह लो, इससे तुम स्टोव सुलगाकर
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दो चाय बना सकते हो 
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पर डिबिया वापस देनी है मुझे, यह याद रखना है।
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अंधेरा हो गया है, दिया-बत्ती कर लो
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तो डिबिया तुम्हीं रख लेना
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मुझे जाना है
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और नई माचिस का सरंजाम करना है।
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मैं विश्‍वास दिलाता हूं
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  कि मैं इसका कुछ नहीं करूंगा और।
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बीड़ी सुलगाकर दो कस खींचूंगा
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एक आप ही खींच लेना
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फिर सोचेंगे 
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आपकी डिबिया आपको वापस दूंगा।
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लाओ, दो माचिस
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पहले चूल्हा सुलगा लूं
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एक आप खा लेना 
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एक मैं खा लूंगा
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फिर अपन ठीक तरह से सोचेंगे
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कि अब हमें
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क्या कैसे करना है।
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मैं करूंगा और आप देखोगे
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तीली का उपयोग अकारथ नहीं होगा
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दो कप चाय बनाकर पी लें
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फिर सोचें
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कि क्या होना चाहिए
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समस्याओं का समाधान
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माचिस से इस समय तो इतना ही काम।
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ठीक है कि जेब में इस वक्त
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पैसे नहीं हैं 
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माचिस मेरे पास भी मिल जाती
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बात अभी की है 
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और बात दीया-बत्ती की है
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उजाला होने पर सब-कुछ दीखेगा साफ-साफ।
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आपकी इस माचिस में तो
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चार तीलियां हैं
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मुझे तो फकत एक की जरूरत है
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तीन तीलियों सहित
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आपकी माचिस आपको वापस कर दूंगा।
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लाओ, दो माचिस
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मैं विश्‍वास दिलाता हूं
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    कि मैं इसका कुछ नहीं करूंगा और।
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'''अनुवाद - नंद भारद्वाज'''
 
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06:49, 2 नवम्बर 2015 के समय का अवतरण

 आग सिर्फ वही तो नहीं होती
जो नजर आती है
दिपदिपाती हुई अग्नि
जो दिखती नहीं
लेकिन रेत पर बिछ जाती है
धर दें अनजाने तो सिक जाते हैं पांव।


आग के उपयोग से पहले
उसकी पहचान जरूरी है
कार्य-सिद्धि के लिए वह
पूरी है कि अधूरी
यह जानना बेहद जरूरी।

समय आने पर आग
उपार्जित करनी पड़ती है
न मिले तो यहां-वहां से लानी पड़ती है
बर्फ के पहाड़ के नीचे
दबकर मरने से पहले
आग अर्जित कर
बर्फ को पिघलाना पड़ता है।

जहां नजर आती है आंख में ललाई
नस-नस चेहरे पर तनी हुई
बंधी हुई मुट्ठियां
फनफनाते नथुने
और श्वास-गति बढ़ी हुई -
समझ लीजिए, उस जगह आग सुलग चुकी है।

कहते हैं कि राग से आग उपजती थी
शब्दों से प्रकट होती
अग्नि को देखा है
झेली है
बरसों से पोषित आग
दबी हुई यह आग
बाहर लानी है तुम्हें
जहां आग लग गई
बुझानी है तुम्हें
बुझ गई तो सोच लो
फिर से लगानी है तुम्हें
जान लो कि आग की पहचान पानी है तुम्हें।

कितनी अजीब बात है
लोग हथेली पर हीरै की तरह आग धर
उसका सौदा कर लेते हैं
आग को
लाग की तरह काम लेकर
अपना समय काटने के लिए
पीढियों की गर्मी को
गिरवी धर देते हैं।

मरते-खसते रहने के बावजूद
न मिले तुम्हें अगर
कहीं कोई चिनगारी दबी हुई -
कैसे वह पैदा होती है?
सोच-समझकर वह समझ
     समझानी है तुम्हें।

पर सबसे पहले
आग से तुम्हें
अपनी परख-पहचान जरूर पा जानी है।

लाओ दो माचिस

लो यह माचिस और सुनो
    कि तुम इसका कुछ नहीं करोगे
सिवाय इसके
कि अपनी बीड़ी सुलगा लो
तीली फूंक देकर वापस बुझा दो
और डिबिया मुझे वापस कर दोगे।

लो यह माचिस
पर याद रखना
कि इससे तुम्हें
   चूल्हा सुलगाना है
रोटियां बनानी हैं
कारज सार डिबिया मुझे वापस कर देनी है।

यह लो, इससे तुम स्टोव सुलगाकर
दो चाय बना सकते हो
घर-जरूरत की खातिर
दो-चार तीलियां रख भी सकते हो
पर डिबिया वापस देनी है मुझे, यह याद रखना है।

अंधेरा हो गया है, दिया-बत्ती कर लो
दो-चार तीलियां ही बची हों
तो डिबिया तुम्हीं रख लेना
अब तो तुम भी जानते हो -
     तुम्हें इसका क्या करना है
मुझे जाना है
और नई माचिस का सरंजाम करना है।

हां, लाओ, दो माचिस !
मैं विश्‍वास दिलाता हूं
   कि मैं इसका कुछ नहीं करूंगा और।
बीड़ी सुलगाकर दो कस खींचूंगा
एक आप ही खींच लेना
फिर सोचेंगे
हमें इसका क्या करना है
आपकी डिबिया आपको वापस दूंगा।

लाओ, दो माचिस
पहले चूल्हा सुलगा लूं
दो टिक्कड़ बनाकर सेक लूं
एक आप खा लेना
एक मैं खा लूंगा
फिर अपन ठीक तरह से सोचेंगे
कि अब हमें
क्या कैसे करना है।

मैं करूंगा और आप देखोगे
तीली का उपयोग अकारथ नहीं होगा
दो कप चाय बनाकर पी लें
फिर सोचें
कि क्या होना चाहिए
समस्याओं का समाधान
माचिस से इस समय तो इतना ही काम।

ठीक है कि जेब में इस वक्त
पैसे नहीं हैं
माचिस मेरे पास भी मिल जाती
बात अभी की है
और बात दीया-बत्ती की है
उजाला होने पर सब-कुछ दीखेगा साफ-साफ।

आपकी इस माचिस में तो
चार तीलियां हैं
मुझे तो फकत एक की जरूरत है
तीन तीलियों सहित
आपकी माचिस आपको वापस कर दूंगा।

लाओ, दो माचिस
मैं विश्‍वास दिलाता हूं
    कि मैं इसका कुछ नहीं करूंगा और।

अनुवाद - नंद भारद्वाज