भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आग लगने से धुआँ माहौल पर छाया तमाम / ओम प्रकाश नदीम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आग लगने से धुआँ माहौल पर छाया तमाम ।
बात मामूली थी लेकिन ज़ह्न ने सोचा तमाम ।

चोट तो बस ऊँचे-ऊँचे पर्वतों पर की गई,
और नीचे ख़ून में लथपथ हुए दरिया तमाम ।

धीरे-धीरे बढ़ रही थी प्यार के दीपक की लौ,
एक झोंके ने तुम्हारे कर दिया क़िस्सा तमाम ।

मुझसे मिल कर किस क़दर होगी मसर्रत आपको,
इस तसव्वुर के सहारे कट गया रस्ता तमाम ।

शह हवा की पा के कुछ तिनके शरर से जा मिले,
रफ्ता-रफ्ता नज्र-ए-आतिश हो गया सहरा तमाम ।

एक झोंका मग़रिबी आँधी का आया और ’नदीम’
साफ़-सुथरे घर को मेरे कर गया गन्दा तमाम ।