भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आजकल / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:33, 11 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} Category:गज़ल हवा में फिर से घ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हवा में फिर से घुटन है आजकल ।

रोज सीने में जलन है आजकल ॥


घुल रही नफ़रत नदी के नीर में ।

नफ़रतों का आचमन है आजकल ॥


कौन सी अब छत भरोसेमन्द है।

फ़र्श भी नंगे बदन है आजकल ॥


गले मिलते वक़्त खंज़र हाथ में ।

हो रहा ऐसे मिलन है आजकल॥


फूल चुप खामोश बुलबुल क्या करे।

लहू में डूबा चमन है आजकल ॥


गोलियाँ छपने लगी अख़बार में ।

वक़्त कितना बदचलन है आजकल ॥


जा नहीं सकते कहीं बचकर कदम ।

बाट में लिपटा कफ़न है आजकल ॥