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आजकल / समीर बरन नन्दी

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मेरे कोठार में, दन्त में विष भरे
हमले की तैयारी में पूँछ पर उठकर लहरा रहा है
पकड़ने जाओ तो डसने के लिए फुफकारता है ।

कुछ कहना चाहूँ तो, सुना है उसे सुनाई नहीं देता ।

नींद में उसकी फुसफुसाहट सुनता हूँ
देखता हूँ -- हरा-नीला वर्ण उसका चौड़ा-फन

हाथ जहाँ डालता हूँ --
काग़ज़ की तरह निकल आता है वो ।