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आज़ादी का जन्मदिवस / सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना

सुना है कि बिटिया सयानी हो गई है
सोचा, इस बरस
उस बिटिया से मिल आऊँ
जन्मदिवस की हार्दिक बधाई दे आऊँ
मैं ढूंढने निकल पड़ी
उसी बिटिया को
जिसका नाम आज़ादी है

सबसे पहले पहुँच गई
ईश्वर के पावन दर पर
लेकिन वहाँ कोई माया-खेल चल रहा था
आलीशान दरबार सजा-धजा दिख रहा था
चौंधियाते कपड़ों और गहनों से लदे-दबे
कलियुगी संत-उपदेशक बाँट रहे थे
विभिन्न अदाओं के साथ नवीन अद्भुत ज्ञान
धर्म की सुनहली जंजीरों से बंधे थे
इस भेड़ियाधसान में दूरदराज से आए
लग रहे अफीम खाए बेजुबान से लोग
उतारी जाने लगी
फिर ईश्वर की जगह
कुछ महानुभावों की आरती

वहाँ से मैं भाग चली
फूलों की उन्मुक्त बगिया में
जहाँ किसी के मिलने की
संभावना दिख रही थी
पर पास गई थी देखा
फूल तो फूल
नन्हीं नवजात कलियों को
भौंरे ही नोंचकर खा रहे थे
बेबस माली रो रहा था
कोयलिया का भी गला रूंध गया था
गा रही थी कोई रोदनगीत अनवरत

अब मन बहुत उदास हो चला था
सोचा बाज़ार चलकर
थोड़ा ‘मनफेरवट’ कर लूँ
हमेशा की तरह वहाँ चहल-पहल थी
‘एक के पैसे में दो ले लो’ की लुभावन रट थी
हीरों के गहने पर पच्चीस प्रतिशत की छूट थी
बनिए ख़ूब झूम रहे थे
जा बैठा था सांढ सर्वोच्च शिखर पर
गा रहे थे भांट-चारण उनकी वीरोदावली
जिसने छोड़ा था कोई सुपरसोनिक तीर
पर अफ़सोस की बड़ी बात थी
प्याज, दाल और सब्जियों जैसी ज़रुरी चीजों को
बस निहार सकते थे वे
जिनके पास बटुए रखने की औकात नहीं थी

पास में ही शहर का सबसे बड़ा काॅलेज था
वहाँ अज़ीब शोर था
किसी सनी सिंह का प्रोग्राम चल रहा था
साड़ी वाली नारी नहीं थी वहाँ कोई
मगर नारी और साड़ी का वीभत्स मेल
चल रहा था
नेक्स्ट जेन के कपड़े
नए फाॅर्मूले गढ़ चुके थे
मन की आँखों पर काले चश्मे चढ़े थे
उधर घरों में बूढ़े माँ-बाप
मुर्दों से पड़े थे

थकी-हारी मैं अपने घर की ओर चल पड़ी
रास्ते में एक अद्भुत नज़ारा था
अपनी आज़ादी बिटिया
चिथड़े में लिपटी कटोरा लिए
इज्ज़त की भीख मांग रही थी
दूसरे हाथ में
मज़बूती से पकड़ी गई
छोटी-सी जीर्ण लाठी थी
ठक-ठक आवाज उससे आ रही थी
हाँ,वह धीमे-धीमे लंगड़ती हुई चल रही थी
भीड़ उसे अपनी ओर खींच रही थी
हाथों में लिए नए स्मार्ट फोन
उसे मुस्कुराने को कह रही थी
कोशिश कर भी वह ज़रा मुस्कुरा नहीँ पा रही थी
उसके फटे होठों से खून रिस रहा था
माथे पर साफ दिख रही थी
चिंता की अनगिनत लकीरें
अपनी आज़ादी बिटिया
देश की सबसे बड़ी सेलिब्रिटी होने की
कीमत चुका रही थी
उसे घेरे कई अधनंगे जोड़े
नशे में धुत चिल्ला रहे थे
‘सेल्फी ले ‘गीत की धुन पर
भौंडा नाच रहे थे
बड़ी शान से चीयर्स कर
सबसे बड़ा राष्ट्रीय उत्सव मना रहे थे!