Last modified on 9 जनवरी 2015, at 22:05

आजु कोउ मधुपुरतें सखि! आयो / स्वामी सनातनदेव

राग खमाज, झूमरा 14.9.1974

आजु कोउ मधुपुरतें सखि! आयो।
सुफलक-सुत अक्रूर कहावत, राजा कंस पठायो॥
राम-स्यामकों लैन उतै नृपकों सन्देस सुनायो।
वाके क्रूर वचन ने सजनी! व्रज सब विकल बनायो॥1॥
व्रज-तरुके तो फल मनमोहन, का विधि के मन आयो।
का हम सबको बलि करि ही नृप चाहत जग्य रचायो॥2॥
कैसे होय, स्याम बिनु ब्रज को सकहि बचायो।
प्रान गये हूँ भला देहकों को जग सकहि जिवायो॥3॥
हम सब चलहिं मरहिं स्यन्दनतर<ref>रथ के नीचे</ref> को करि है मन भायो।
स्याम बिना जीवन धृक आली! खाली बात बनायो॥4॥
का करि हैं परिजन दुख-दाहे, काहे यह व्रज आयो।
हरि को हूँ ह्वै हाय! न याने नैंकहुँ नेह निभायो॥5॥

शब्दार्थ
<references/>