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आज-1 / व्योमेश शुक्ल

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जब घर के लोग काम पर या कहीं चले जाते हैं

वे दिनचर्या के तट पर जाकर हँसने लगती हैं लेकिन

आज वे अपनी ज़िम्मेदारियों के छत पर खड़ी

पतंगें उड़ा रही हैं

आसमान में उन्होंने अपनी पतंगें

इतनी दूर तक बढ़ा दी हैं

कि ओझल हो गई हैं

उन्हें वापस लाने में समय लग जाएगा

आज दूसरे कामों का हर्जा होगा

खाना देर में बनेगा कपड़ा देर से धुलेगा

नीचे फ़ोन की घंटी देर तक बजती रहेगी कोई नहीं उठाएगा

एक व्यक्ति दरवाज़ा खटाखटा कर लौट जाएगा

कोई किसी को कुछ देने या किसी से कुछ कहने आएगा तो

यह नहीं हो पाएगा

वे छत पर हैं