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आज की रात / नरेश अग्रवाल

आज की रात वह घर पर नहीं रहेगा
पढ़ेगा किसी खास दोस्त के साथ
उसके आग्रह में अनुमति का इंतजार नहीं है
उसकी जिद अधिक भारी है
वह रात भर जमकर पढ़ेगा क्योंकि परसों से परीक्षा है
बाकी है आज और कल, सिर्फ दो दिन
केवल दो दिनों में अपनी धार तेज करनी है उसे
उसे झुका रहना है लैम्प के प्रकाश के पास
आराम के नाम पर चाय की चुस्कियां बार-बार।
उसके जाने के बाद हम सोचते रहे
हां वह घर पर भी रहकर पढ़ सकता था
लेकिन रोकना कितना मुश्किल था उसे
दोनों दोस्त मिलकर क्या करते होंगे, वे ही जानें
किताबें बंद तो अक्षर भी अदृश्य
दोनों गहरे दोस्त हैं यह बात मन में सुकून देती है।