आज फिर दिल में बहुत उदासी है,
आँख में पानी मगर रूह प्यासी है।
होगें कब वो मेहरबां, कब कहर ढायेंगे?
उनकी फितरत भी मानों खुदा-सी है।
भेद उनके दिल का है पाना बहुत ही मुश्किल,
उनकी हर हरकत जैसी सियासी है।
जुबाँ से इकरार भले वो न करें कभी,
बेरुखी निगाहों की मगर एक बेवफा सी है।
मेरी मैयत पर ही शायद बहा सकें आँसू,
अब भी उनसे यह उम्मीद जरा सी है।