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आज फिर हर सिम्त बिखरे हुए हैं आप / मधुप मोहता

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आज फिर हर सिम्त बिखरे हुए हैं आप
मुस्कुराते फूल से निखरे हुए हैं आप

बहके तेवर,अदा कातिल,नज़र तिरछी
कुछ बात है, सांझ से संवरे हुए हैं आप

इक जवां रात, सुलगी हुई सी तन्हाई
और जलते नक्श से उभरे हुए हैं आप

आपकी यादें बनी यूँ आंसुओं की झील
दिल में पैहम दर्द से गहरे हुए हैं आप

ये मेरी नज़रों में कुहरा उतरा आया है या
खिड़कियों पर ओस से ठहरे हुए हैं आप