जितनो के सिर जितने तारे जुटते हैं उनके उतने ही होते है पुरखे विस्थापन में उखड़े हम जैसों के भटक गए है पुरखे चमकीली पोलोथिन ओढ़े आकाश में निहुर.... निहुर ..... सारी रात सारा आकाश धरती पर हमें पुकार लगाता है ।