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आज भोलि हरेक साँझ मात्तिन थालेछ / भीम विराग

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आज भोलि हरेक साँझ मात्तिन थालेछ
जिन्दगीदेखि जिन्दगी आत्तिन थालेछ

रहरै रहरमा पिएँ विवश भएर पिएँ
दुखमा पिएँ सुखमा पिएँ
पिउँदिन पिउँदिन भन्दै पिएँ
आजभोलि जिन्दगानी छोटिन थालेछ
जिन्दगीदेखि जिन्दगी आत्तिन थालेछ

मन्दिरमा बसेर पिएँ मसानमा लडेर पिएँ
नाचेर पिएँ हाँसेर पिएँ
एकान्तमा कहिलेकाहीं रुँदै पिएँ
आजभोलि हरेक रात रक्सिन थालेछ
जिन्दगीदेखि जिन्दगी आत्तिन थालेछ