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आज सुभाइन ही गई बाग / द्विज

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आज सुभाइन ही गई बाग, बिलोकि प्रसून की पांति रही पगि।
ताही समै तहं आए गुपाल, तिन्हें लखि औरो गयो हियरो ठगि॥
पै 'द्विजदेव' न जानि परयो धौं कहा तिहिं काल परे अंसुवा जगि॥
तू जो कहै सखि लोनो सरूप, सो मो अंखियांन को लोनी गई लगि॥