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आठ मिलि कुटिहो अठोगर / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत में ओठंगर की विधि संपन्न करने का उल्लेख है। इस विधि को संपन्न करते समय दुलहे को स्त्रियों द्वारा गाली देने की प्रथा है। इस गीत में ‘सवा सेर के पोला, अढ़ाई सेर के सूत’ कहावत का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ होता है- आधार से आधेय की सबलता।

आठ मिलि<ref>मिलकर</ref> कुटिहो<ref>कूटना</ref> अठोंगर<ref>विवाह संस्कार में कन्यादान के पूर्व की एक बिधि, जिसमें दुलहे के अतिरिक्त सात व्यक्ति मूसल पकड़कर धान कूटते हैं। उसी कूटे हुए धान के चावल को कंगन में बाँधा जाता है।</ref>, दुलहा बड़ी छोट हे।
माय के, अछत<ref>अक्षत; आखंडित चावल</ref> के मंतर पढ़ि, लगाबे<ref>लगाने लगा</ref> लगलन चोट हे॥1॥
चन्ननक<ref>चंदन का</ref> उखरी<ref>ओखल</ref>, चन्ननक समाठ<ref>मूसल</ref> हे।
माय हे, माय बाप छैन<ref></ref> चँगला<ref>धूर्त्त</ref>, बेटा छैन धीमाठ<ref>धीमा; सुस्त</ref> हे॥2॥
माय हे, सबा सेर के पोलबा<ref>पोला; परेते पर सूत लपटने से तैयार होने वाला लच्छा</ref>, अढ़ाय सेर सूत हे।
माय हे, कुटहू न जानै<ref>कूटना भी नहीं जानता है</ref>, हजरिया के पूत<ref>वह सरदार या नायक, जिसके अधीन एक हजार फौज हो, उसका पुत्र, व्यभिचारिणी का पुत्र; दोगला; वर्णसंकर।</ref> हे॥3॥

शब्दार्थ
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