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आठ सयँ बाजन मोरा नइहर बाजे, आठ सयँ सासुर हे / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

आठ सयँ बाजन<ref>बाजा</ref> मोरा नइहर बाजे, आठ सयँ सासुर<ref>ससुराल</ref> हे।
ललना, सोरह सयँ बजर दरबजवा,<ref>वज्र के दरवाजे अर्थात् वज्र के किवाड़</ref> अलबेला नहीं जागए हे॥1॥
कतेक नीन<ref>नींद</ref> सोव हऽ तू साहेब, अउरू सिर साहेब हे।
चूरी फेंकि मारली, नेपुर<ref>नूपुर</ref> फेंकि, अउरो कँगन फंेकि हे।
सोरहो आभरन फेंकि मारली, अलबेला नहीं जागल हे॥2॥
हम तो जनली<ref>जाना</ref> रामजी बेटा देतन, बेटिया जलम लेलक हे।
ललना, सेहो सुनि सासु रिसियायल,<ref>क्रुद्ध</ref> अउरो गोसियायल<ref>गुस्से से भर गया</ref> हे।
सासुजी, तरबो<ref>ताड़ की</ref> चटइया नहीं दीहलन, पलँग मोर छीनि लेलन हे॥3॥
हम तो जनली राम बेटा देतन, बेटिया जलम लेलक हे।
सेहो सुनि परमु रिसियायल, मुँहो नहीं बोलल हे॥4॥
ननदी मोरा गरियाबए,<ref>गाली देती है</ref> गोतनी घुघुकावय<ref>आँख तरेर कर कोसती रहती है</ref> हे।
एक डगरिनियाँ मोर माय, जे कोर<ref>क्रीड़, गोद</ref> पइसी बइठल हे॥5॥
हम त जनली रामजी बेटा देतन, बेटिया जलम लेलक हे।
सेहो सुनि ससुर जी रोसायल,<ref>रोष किया</ref> आउर<ref>और</ref> गोसायल हे।
सोंठवा हरदिया न कीन<ref>क्रय, खरीद</ref> लयलन, मुँहवा फुलायल हे॥6॥

शब्दार्थ
<references/>