Last modified on 14 सितम्बर 2010, at 01:10

आतप / शैलेन्द्र चौहान

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:10, 14 सितम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

फिर फूले हैं
सेमल, टेसू, अमलतास
हुआ ग़ुलमोहर
सुर्ख़ लाल
ताप बहुत है
अलसाई है दोपहरी
साँझ ढले
मेघ घिरे
धीरे-धीरे खग, मृग
दृग से ओट हुए
दुबके वनवासी
ईंधन की लकड़ी पर
रोक लगी जंगल में
वन-वन भटकें मूलनिवासी
जल बिन
बहुत बुरा है हाल
तेवर ग्रीष्म के हैं आक्रामक
कैसे कट पाएंगे ये दिन
जन-मन,पशु-पक्षी
हुए हैं बेहाल