भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आता है याद मुझ को गुज़रा हुआ ज़माना / इक़बाल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:21, 25 फ़रवरी 2013 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आता है याद मुझको गुज़रा हुआ ज़माना
वो बाग़ की बहारें वो सब क चह-चहाना

आज़ादियाँ कहाँ वो अब अपने घोँसले की
अपनी ख़ुशी से आना अपनी ख़ुशी से जाना

लगती हो चोट दिल पर, आता है याद जिस दम
शबनम के आँसूओं पर कलियों का मुस्कुराना

वो प्यारी-प्यारी सूरत, वो कामिनी-सी मूरत
आबाद जिस के दम से था मेरा आशियाना