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आती है झिझक सी उनके आगे जाते / जाँ निसार अख़्तर

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आती है झिझक सी उनके आगे जाते
वो देखते हैं कभी कभी तो ऐसे

घबरा के मैं बाँहों में सिमट जाती हूँ
लगता है कि मैं कुछ नहीं पहने जैसे