भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आते ही पहली तारीख़ / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

      आते ही पहली तारीख़
       चीज़ें ही याद आती हैं

कपड़ों के घाव पूरने
लानी है धागे की रील
चूल्हे की गर्मी के वास्ते
जाना है चार-पाँच मील

       महँगाई के बुखार में
       चीज़ें ही भरमाती हैं

नोटों के कोण काटने
पाँवों ने नाप दी सड़क
चीज़ नज़र की दलील ने
दे मारी धूल में पटक

       माथे की बूँद-बूँद को
       चीज़ें ही दहलाती हैं