भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदमी का जाया / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:56, 20 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=खुली आँखें खुले डैने / …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आदमी का
जाया
उपजाया भी,
न हुआ
अब तक
वह आदमी,
धरा-धाम का-
गौरव-गुन-ग्राम का-
कौड़ी का-छदाम का-
काम और नाम का।

रचनाकाल: २५/२६-१२-१९९१, बाँदा