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आदमी की हसरतों में फ़ायदा ही प्यार है / रचना उनियाल

आदमी की हसरतों में फ़ायदा ही प्यार है,
आ गया गर काम मेरे बन गया तू यार है।
 
ख़ौफ़ का मंजर दिखाती आज क़ुदरत की हवा,
साँस से इंसान डरता ज़िंदगी बेज़ार है।
 
पैर फैलाना ज़रूरी आदमी का ही नहीं,
देख चादर को समेटे जिस्त की दरकार है।
 
बेशुमारी की बीमारी नस्ल में कितनी बढ़ी,
छोड़ते जाते ज़मीं को सोच क्या रफ़्तार है।
 
रूह सिमटी है कहीं पर जी रहे हैं इश्क़ को,
लाश को ही ढो रहे हैं कब्र से तकरार है।
 
आशिक़ी को जान पायें हैं कहाँ मजनूँ यहाँ,
अश्क़ आँखों से गिरा तो बन गया व्यापार है।
 
सिर उठा कर जी रहे हम बात ये ‘रचना’ कहे,
सर हमारा भी झुके गर मौला का दरबार है।