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आदमी चेहरे बदलता जा रहा है / अमन चाँदपुरी

आदमी चेहरे बदलता जा रहा है
आइना ये देखकर भरमा रहा है

हैं सियासत ने जहाँ भी पाँव रख्खा
झूठ का परचम वहीं फहरा रहा है

ख़ामुशी पसरी थी अंदर मुद्दतों से
इसलिए गूंगा भी अब चिल्ला रहा है

क़त्ल करके ख़ुश नहीं सैयाद मेरा
अपनी ग़लती पर बहुत पछता रहा है

कैसे समझाऊँ भला दिल को मैं ये अब
दिल सज़ा अपने किये की पा रहा है

झूठ की बेवज्ह मैंने की वकालत
सच मुझे अंदर ही अंदर खा रहा है

त्याग कर केंचुल 'अमन' नफ़रत की आख़िर -
कौन अम्नो-चैन से अब गा रहा है